मुझको खुशी मिलती है तुमको हंसाने से,
वर्ना मुझे क्या मिलता है युं ही मुस्कराने से।
मैं तो हंस लेता हूं बिन बहाने के,
वो कोइ और होन्गे जो रोते है बहाने से।
गमों मे मुस्करांऊ पर पागल नहीं हूं मैं,
गमों की आदत सी पडी गम ही गम उठाने से।
जब पास थे तुम तो दूर हो गये,
अब पास कैसे आंऊ तुमारे बुलाने से।
तुम तक आये वो राह छोडी मैंने,
अब तो राह भी भूल गया चोट खाने से।
चन्द्र मोहनरखे, हर पल नज़र तुमारी राहों पर,
जाने कब आओ तुम पास मेरे किसी बहाने से।
मुझसे रूठने वालों ये तो सोच लो,
बीत जाये ना ये जिन्दगी रूठने मनाने से।
मुझको खुशी मिलती है तुमको हंसाने से,
वर्ना मुझे क्या मिलता है युं ही मुस्कराने से।
Saturday, October 30, 2010
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एक अजीब सा सफ़र है ज़िन्दगी
ReplyDeleteटेढ़े -मेढ़े रास्तों से गुज़रती हुई
नए-नए लोग, रोज़ नई ज़गह
हर तरफ नये रंगों में ज़िन्दगी
मेरे नजरिये से देखो तुम भी
एक नायाब खेल है ज़िन्दगी
हँसी-ख़ुशी से लबरेज़ अक्सर
कभी कभी रुलाती है ज़िन्दगी
फिर भी ख़ूबसूरत है ज़िन्दगी
बहुत अज़ीज़ है मुझे ज़िन्दगी
nice post..
http://shayaridays.blogspot.com
बहुत खूब चंद्रमोहन जी ...जिंदगी के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराती बेहतरीन रचना....सादर शुभकामनायें !!!
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