Monday, May 31, 2010

मौत की सच्चाई


मौत जाने क्यों लोगों को शिकवा है तुमसे।
वे सोचते हैं प्यारों को उनके तू छीन गयी उनसे॥
लेकिन वे कितने अन्जान तुम्हारे प्यार से, तुमसे।
जो तुम्हारे साथ का अर्थ लगाते हैं गम से॥
उनकी तरफ़ से तो मृतक तुमारे क्रोध का शिकार हुआ।
वो क्या जानें मरा वही जिसको तुमसे प्यार हुआ॥
क्या मरने वाला दुखी होता है जिसके लिये हम शोक करें?
वो हमको क्यों छोड गया दुनिया में, यही सोचा करें॥
लेकिन हमने उसका कहां तक साथ दिया? बस जनाजे तक!
जनाजे तक तो सभी साथ देते हैं दोस्त से दुश्मन तक॥
क्या चिता जलने के बाद भी कोइ साथ देता है?
वही मौत साथ देती है जिसका नाम नहीं वह लेता है॥
मौत तू बडी दिल वाली है साथ देती है अन्त मे सबका।
जो है दुनिया मे अकेला, दोस्त ना दुस्मन है जिसका॥
तुझसे मिलने के बाद ही जान पाते हैं सभी तेरा रहस्य।
नहीं कर पायेगा कोइ ब्यथिथ ना किसी का हास्य॥
जान जाते हैं कि तू ही उनका साथ देगी सदा।
क्योंकि याद आता है उसे वह स्वार्थी दुनिया में था॥
उस दुनिया में, जहां उसके सभी थे स्वार्थ के लिये।
उसे लाये थे जो जलाने शमशान तक इसलिये॥
कि बहुत जल्द उसकी लाश सड. ना जाये वहां।
ताकि मौत औरों को ना देख पाये वहां॥
लेकिन मौत का वही अपना, क्या करेगी औरों से मिलकर।
जो उससे मिलने को औरों से दूर हुआ मरकर॥
जो मौत से प्यार ना करे उसके पास जाकर।
वही आ पायेगा उससे सदा के लिये रूठकर॥
लेकिन खुशी की बात ये मौत से सभी प्यार करते हैं।
जीवन मे ना सही जीवन के बाद उसकी पूजा करते हैं॥
पा लेते हैं इतना संतोष कि इस बोझिल दुनिया में,
सुख-दुख और फूल-कांटों की इस बगिया में॥
फ़िर लौटकर दुनिया में,आ सकते तो हैं पर आते नहीं है।
आनन्द मे रहते हैं, मोह-माया की छांव वहां पाते नहीं हैं॥

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